दरिंदे
दरिंदे" किस मुह से हम माफी मागें, मानवता शर्मसार है। भारत माँ की आज बेटियां, करतीं करुण पुकार हैं।। कितना और गिरेगा मानव, कहना अब बेकार है। नहीं सुरक्षित हैं अब बेटी, कैसा यह परिवार है।। सहमी कभी हुई थी दिल्ली, निर्भया की चीत्कार है। आज हैदराबाद की आत्मा, सबको कहे पुकार है।। पशुता भी लज्जित है…